MASHAALLEIN OR THE TUNGSTEN TORTURE

JO DIN KE UJAALE MAIN NA MILA,DIL DHONDHE AISE SAPNE KO,IS RAAT KI JAGMAG MAIN DOOBA- MAIN DHONDH RAHA HOON APNE KO...

Saturday, November 05, 2005

















कांच की बंद खिड़कियों के पीछे
तुम बैठी हो घुटनों में मुह छुपाये
क्या हुआ यदि हमारे तुम्हारे बीच
एक भी शब्द नही है।


मुझे जो कहना है कह जाऊँगा
यहाँ, इस तरह अनदेखा मेरा खड़ा होना
मात्र एक गंध की तरह
तुम्हारे भीतर बहार भर जाएगा

क्योंकि जन घुटनों से सर उठाओगी
तुम बहार मेरी आकृति नही
यह धुंधली सी शाम
और आंच पर जगी
एक धुंधली सी भाप
देख सकोगी
जिसे इस अंधेरे मेंअ
पिघला कर मैं छोड़ गया होंगा

- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

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